Supreme Court ने सांसदों और विधायकों से छीना इस चीज का विशेषाधिकार!
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Delhi Desk : सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने रिश्वत के मामले में सांसदों और विधायकों को मिलने वाली ‘छूट’ खत्म कर दी है। अब इस मामले में सांसदों और विधायकों को किसी भी प्रकार की छूट नहीं मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि मात्र रिश्वत लेना ही अपने आप में एक अपराध है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बड़ी भाभी सीता सोरेन से संबंधित मामले में फैसला सुनाते हुए यह बात कही है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने रिश्वत लेने के मामले में सांसदों और विधायकों को उनके विशेषाधिकार के तहत छूट देने वाले अपने ही आदेश को पलट दिया है।

Supreme Court Proceedings

सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया। पीठ का नेतृत्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे थे। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि रिश्वत लेने से सार्वजनिक जीवन में शुचिता नष्ट हो जाती है।

ताजा फैसले ने 1998 में ‘पीवी नरसिम्हा राव बनाम स्टेट’ मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के ही पिछले फैसले को पलट दिया है। मामला जन-प्रतिनिधियों द्वारा रिश्वत लेकर सदन के अंदर भाषण देने और मत डालने का था। उस समय अदालत ने फैसला दिया था कि सांसदों और विधायकों पर इस तरह के मामलों में रिश्वत लेने के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता क्योंकि उन्हें संसदीय विशेषाधिकार का संरक्षण प्राप्त है।

Supreme Court Hearing

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ताजा फैसले में कहा कि पुराना फैसला गलत था। पीठ के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) के तहत जन-प्रतिनिधियों को संसद और विधानसभाओं के अंदर कुछ करने और कहने के लिए दी गई छूट सदन की सामूहिक कार्य प्रणाली से संबंधित है।

अनुच्छेद 105 (2) के तहत सांसदों को और अनुच्छेद 194 (2) के तहत विधायकों को विशेषाधिकार मिलते हैं। अदालत ने कहा कि इन विशेषाधिकारों का जन-प्रतिनिधियों के मूलभूत कार्यों से संबंध होना आवश्यक है और रिश्वत लेना इस विशेषाधिकार के तहत नहीं आता है।

Supreme Court Overruled 1998 Verdict

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का यह ताजा फैसला झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बड़ी भाभी सीता सोरेन से जुड़े एक मामले में आया है। इस मामले को ‘सीता सोरेन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ के नाम से जाना जाता है। यह मामला 2012 में राज्यसभा की एक सीट के लिए हुए चुनाव के दौरान सामने आया था।

अपने फैसले में संविधान पीठ ने स्पष्ट कहा कि ‘पीवी नरसिम्हा राव बनाम स्टेट’ मामले में दिया गया फैसला बहुत खतरनाक है और उसे खारिज किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद रिश्वत के मामले में सांसदों और विधायकों को मिलने वाली ‘छूट’ भी खत्म हो गई है।

Supreme Court On Bribery And Corruption

बता दें कि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बड़ी भाभी सीता सोरेन पर राज्यसभा की एक सीट के लिए 2012 में हुए चुनावों में एक विशेष उम्मीदवार के पक्ष में मत डालने के लिए रिश्वत लेने के आरोप लगे थे। सीता सोरेन उस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की विधायक थीं। इस मामले की शिकायत मिलने के बाद चुनाव आयोग ने चुनावों को रद्द कर दिया था।

सीबीआई ने इस मामले की जांच के बाद चार्जशीट दायर की। उसके बाद सीता सोरेन को गिरफ्तार कर लिया गया था और उन्होंने छह महीने जेल में भी बिताए थे। फिलहाल वे जमानत पर जेल से बाहर हैं। 2014 में उन्होंने विशेषाधिकार का हवाला देते हुए झारखंड हाई कोर्ट से मामले को रद्द करने की अपील की थी, लेकिन हाई कोर्ट ने उनकी अपील खारिज कर दी थी।

Supreme Court Constitution Bench

इसके बाद सीता सोरेन ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2023 में मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस फैसले को देते हुए सात जजों की संविधान पीठ ने यह भी कहा कि मात्र रिश्वत लेना ही अपने आप में अपराध है और यह जरूरी नहीं कि जिस काम के लिए रिश्वत ली गई हो, उसे किया गया या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह भी कहा कि रिश्वत लेने से सार्वजनिक जीवन में शुचिता नष्ट होती है और भारत के संवैधानिक लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि ताजा फैसला राज्यसभा की कार्यवाही पर भी लागू होगा और इसमें उप-राष्ट्रपति का चुनाव भी शामिल है।

-अनुवादक खबर ब्यूरो


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